Bhagavad Gita Quotes In Hindi | Shrimad Bhagawad Geeta Details |
★★★★★★★★★★★★★★★★★★ “”मन की परेशानी या समय की हैरानी का एक ही हल है कि आप अपने सवालों के जवाबों के पीछे ऐसे पड़ जाए, जैसे आप एक हठयोगी हो।” ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ | ★★★★★★★★★★★★★★★★★★ श्रीमद्भगवत गीता एक ऐसा ग्रंथ है जो मानव को कर्म करना सिखाता है, जो मनुष्य को धर्म की सही परिभाषा समझाता है। यह एक ऐसा पवित्र ग्रंथ है, जो आपको मोक्ष मार्ग तक ले जाता है। यूँ तो भगवत गीता सनातन हिन्दू वैदिक धरम का आधार है, परंतु आज मानव कल्याण के लिए इस पवित्र ग्रंथ के ज्ञान को दिल खोल कर अपनाने की आवश्यकता है क्योंकि यही सनातन है, और यही शाश्वत है। ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ |
Download Shrimad Bhagawad Geeta Chapter -16 in MP3 & MP4
- Click Copy URL Button first.
- After copy Url, click on download button below.
- After Clicking Download button. Click on download button and Paste the copied Url in the given Box.
- After Paste the Url. Click the download button and download Bhajan in any formate as you want.
यह भी देखें – You May Like
- 👉🏻Srimad Bhagawat Geeta Chapter-1 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Srimad Bhagawat Geeta Chapter-2 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Shrimad Bhagwad Geeta Chapter-3 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Shrimad Bhagwad Geeta Chapter-4 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Shrimad Bhagwad Geeta Chapter-5 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Shrimad Bhagwad Geeta Chapter-6 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Shrimad Bhagwad Geeta Chapter-7 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Shrimad Bhagwad Geeta Chapter-8 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Shrimad Bhagwad Geeta Chapter-9 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Shrimad Bhagwad Geeta Chapter-10 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Shrimad Bhagwad Geeta Chapter-11 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Shrimad Bhagwad Geeta Chapter-12 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Shrimad Bhagwad Geeta Chapter-13 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Shrimad Bhagawad Geeta Chapter-14 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Shrimad Bhagwad Geeta Chapter-15 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Shrimad Bhagwad Geeta Chapter-17 With Narration Lyric in Hindi
- 👉🏻Shrimad Bhagawad Geeta Chapter -18 With Narration Lyric in Hindi
श्रीमदभगवदगीता षोडश अध्याय सभी श्लोक हिंदी लिरिक्स
श्री भगवानुवाच
अभयं सत्त्वसंशुद्धिः ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
श्रीभगवान् बोले —
भयका सर्वथा अभाव
अन्तःकरणकी शुद्धि ज्ञानके लिये
योगमें दृढ़ स्थिति
सात्त्विक दान इन्द्रियोंका दमन यज्ञ
स्वाध्याय कर्तव्यपालनके लिये
कष्ट सहना शरीरमनवाणीकी सरलता।
अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्।
दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
अहिंसा? सत्यभाषण क्रोध न करना
संसारकी कामनाका त्याग अन्तःकरणमें रागद्वेषजनित हलचलका न होना
चुगली न करना प्राणियोंपर दया करना
सांसारिक विषयोंमें न ललचाना अन्तःकरणकी
कोमलता अकर्तव्य करनेमें लज्जा चपलताका अभाव।
तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
तेज (प्रभाव)? क्षमा? धैर्य?
शरीरकी शुद्धि? वैरभावका न रहना
और मानको न चाहना? हे
भरतवंशी अर्जुन ये सभी दैवी
सम्पदाको प्राप्त हुए मनुष्यके लक्षण हैं।
दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
हे पृथानन्दन
दम्भ करना? घमण्ड करना?
अभिमान करना? क्रोध करना? कठोरता रखना
और अविवेकका होना भी —
ये सभी आसुरीसम्पदाको
प्राप्त हुए मनुष्यके लक्षण हैं।
दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।
मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
दैवीसम्पत्ति मुक्तिके लिये
और आसुरीसम्पत्ति बन्धनके लिये है।
हे पाण्डव तुम दैवीसम्पत्तिको प्राप्त हुए हो?
इसलिये तुम्हें शोक (चिन्ता) नहीं करना चाहिये।
द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन् दैव आसुर एव च।
दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ मे श्रृणु।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
इस लोकमें दो तरहके प्राणियोंकी सृष्टि है
— दैवी और आसुरी।
दैवीका तो मैंने विस्तारसे वर्णन कर दिया?
अब हे पार्थ तुम मेरेसे आसुरीका विस्तार सुनो।
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः।
न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
आसुरी प्रकृतिवाले
मनुष्य प्रवृत्ति और
निवृत्तिको नहीं जानते
और उनमें न बाह्यशुद्धि? न श्रेष्ठ
आचरण तथा न सत्यपालन ही होता है।
असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्।
अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम्।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
वे कहा करते हैं
कि संसार असत्य? अप्रतिष्ठित
और बिना ईश्वरके अपनेआप केवल
स्त्रीपुरुषके संयोगसे पैदा हुआ है।
इसलिये काम ही इसका कारण है?
और कोई कारण नहीं है।
एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः।
प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽहिताः।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
उपर्युक्त (नास्तिक)
दृष्टिका आश्रय लेनेवाले
जो मनुष्य अपने नित्य स्वरूपको नहीं मानते?
जिनकी बुद्धि तुच्छ है?
जो उग्रकर्मा और संसारके शत्रु हैं?
उन मनुष्योंकी सामर्थ्यका उपयोग
जगत्का नाश करनेके लिये ही होता है।
काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः।
मोहाद्गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
कभी पूरी न होनेवाली
कामनाओंका आश्रय लेकर दम्भ? अभिमान
और मदमें चूर रहनेवाले
तथा अपवित्र व्रत धारण करनेवाले
मनुष्य मोहके कारण दुराग्रहोंको
धारण करके संसारमें विचरते रहते हैं।
चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः।
कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्िचताः।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
वे मृत्युपर्यन्त रहनेवाली
अपार चिन्ताओंका आश्रय लेनेवाले?
पदार्थोंका संग्रह और
उनका भोग करनेमें ही लगे रहनेवाले और
जो कुछ है? वह इतना ही है —
ऐसा निश्चय करनेवाले होते हैं।
आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः।
ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान्।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
वे आशाकी सैकड़ों फाँसियोंसे बँधे हुए
मनुष्य कामक्रोधके परायण होकर
पदार्थोंका भोग करनेके लिये
अन्यायपूर्वक धनसंचय करनेकी चेष्टा करते रहते हैं।
इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम्।
इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम्।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
इतनी वस्तुएँ
तो हमने आज प्राप्त कर लीं
और अब इस मनोरथको प्राप्त (पूरा) कर लेंगे।,
इतना धन तो हमारे पास है ही?
इतना धन फिर हो जायगा।
असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि।
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
वह शत्रु
तो हमारे द्वारा मारा गया
और उन दूसरे शत्रुओंको
भी हम मार डालेंगे।
हम सर्वसमर्थ हैं।
हमारे पास भोगसामग्री बहुत है।
हम सिद्ध हैं। हम बड़े बलवान् और सुखी हैं।
आढ्योऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
हम धनवान् हैं?
बहुतसे मनुष्य हमारे पास हैं?
हमारे समान और
कौन है हम खूब यज्ञ करेंगे?
दान देंगे और मौज करेंगे —
इस तरह वे अज्ञानसे मोहित रहते हैं।
अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः।
प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
कामनाओंके कारण
तरहतरहसे भ्रमित चित्तवाले?
मोहजालमें अच्छी तरहसे फँसे हुए
तथा पदार्थों और भोगोंमें
अत्यन्त आसक्त रहनेवाले मनुष्य
भयङ्कर नरकोंमें गिरते हैं।
आत्मसम्भाविताः स्तब्धा धनमानमदान्विताः।
यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम्।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
अपनेको सबसे अधिक पूज्य माननेवाले?
अकड़ रखनेवाले तथा धन और
मानके मदमें चूर रहनेवाले
वे मनुष्य दम्भसे अविधिपूर्वक
नाममात्रके यज्ञोंसे यजन करते हैं।
अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः।
मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
वे अहङ्कार? हठ? घमण्ड?
कामना और क्रोधका आश्रय लेनेवाले
मनुष्य अपने और दूसरोंके शरीरमें रहनेवाले
मुझ अन्तर्यामीके साथ द्वेष करते हैं
तथा (मेरे और दूसरोंके गुणोंमें) दोषदृष्टि रखते हैं।
तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान्।
क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
उन द्वेष करनेवाले?
क्रूर स्वभाववाले और
संसारमें महान् नीच?
अपवित्र मनुष्योंको
मैं बारबार आसुरी
योनियोंमें गिराता ही रहता हूँ।
असुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि।
मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
हे कुन्तीनन्दन
वे मूढ मनुष्य मेरेको प्राप्त न करके
ही जन्मजन्मान्तरमें आसुरी योनिको प्राप्त होते हैं?
फिर उससे भी अधिक अधम गतिमें
अर्थात् भयङ्कर नरकोंमें चले जाते हैं।
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
काम? क्रोध और लोभ —
ये तीन प्रकारके नरकके दरवाजे
जीवात्माका पतन करनेवाले हैं?
इसलिये इन तीनोंका
त्याग कर देना चाहिये।
एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः।
आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम्।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
हे कुन्तीनन्दन
इन नरकके तीनों दरवाजोंसे रहित हुआ
जो मनुष्य अपने कल्याणका आचरण करता है?
वह परमगतिको प्राप्त हो जाता है।
यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
जो मनुष्य
शास्त्रविधिको छोड़कर
अपनी इच्छासे मनमाना आचरण करता है?
वह न सिद्धि(अन्तःकरणकी शुद्धि)
को? न सुखको और
न परमगतिको ही प्राप्त होता है।
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि।।
॥ श्लोक का अर्थ ॥
अतः तेरे लियेकर्तव्यअकर्तव्यकी व्यवस्थामें
शास्त्र ही प्रमाण है —
ऐसा जानकर तू इस लोकमें शास्त्रविधिसे
नियत कर्तव्य कर्म करनेयोग्य है।
Please Like And Share This @ Your Facebook Wall We Need Your Support To Grown UP | For Supporting Just Do LIKE | SHARE | COMMENT .